मैं ऐसी ही हूं...
मैं आध्यात्मिक भी हूं और आधुनिक भी ।
मैं अपनी जमीं से जुड़ी हुई हूं और आसमां में उड़ने का हुनर भी रखती हूं ।
मैं संस्कारों में सिमटी हुई भी चुप रहती हूं और ग़लत होता देख उनके जवाब भी देती हूं ।
मैं समाज के सही फैसलों का मान भी रखती हूं
और समाज में हो रहे ग़लत चीजों का विरोध भी करती हूं ।
मैं आध्यात्मिक भी हूं और आधुनिक भी ...
मैं पाठ ,ध्यान और मंत्र जाप भी करती हूं , जो सत्य और प्रमाणित है मैं वो करती हूं मगर , अंधविश्वासों में फंसकर गलत चीजों को करने से बचती भी हूं ।
मुझे सही और ग़लत का भेद जानने में , थोड़ा समय तो लगता है ।
थोड़ी देर जरूर होती है , पर वो भी सच है जनाब , सच कहां ज्यादा देर छूपती है !
# लेखनी
# स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
𝐆𝐞𝐞𝐭𝐚 𝐠𝐞𝐞𝐭 gт
22-Oct-2022 09:17 PM
👌👌👏🏻👏🏻बहुत बढ़िया कविता। सराहनीय!👍
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Mithi . S
17-Aug-2022 09:20 AM
Bahut khub
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
15-Aug-2022 09:52 AM
👌🏼 👌🏼 👌🏼 लाजवाब लाजवाब लाजवाब
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