shweta soni

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मैं ऐसी ही हूं...

मैं आध्यात्मिक भी हूं और आधुनिक भी ।

मैं अपनी जमीं से जुड़ी हुई हूं और आसमां में उड़ने का हुनर भी रखती हूं । 

मैं संस्कारों में सिमटी हुई भी चुप रहती हूं और ग़लत होता देख उनके जवाब भी देती हूं । 

मैं समाज के सही फैसलों का मान भी रखती हूं 
और समाज में हो रहे ग़लत चीजों का विरोध भी करती हूं ।‌

मैं आध्यात्मिक भी हूं और आधुनिक भी ...

मैं पाठ ,ध्यान और मंत्र जाप भी करती हूं , जो सत्य और प्रमाणित है मैं वो करती हूं मगर , अंधविश्वासों में फंसकर गलत चीजों को करने से बचती भी हूं ।

मुझे सही और ग़लत का भेद जानने में , थोड़ा समय तो लगता है ।‌
थोड़ी देर जरूर होती है , पर वो भी सच है जनाब , सच कहां ज्यादा देर छूपती है ! 




# लेखनी
# स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु 

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12 Comments

👌👌👏🏻👏🏻बहुत बढ़िया कविता। सराहनीय!👍

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Mithi . S

17-Aug-2022 09:20 AM

Bahut khub

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👌🏼 👌🏼 👌🏼 लाजवाब लाजवाब लाजवाब

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